मिल्खा सिंह की फाइल फोटो। Image Source : File Photo

एक कहानी जिसने फिर मिल्खा को जिंदा कर दिया और वे बोले- इस प्यार के सहारे 100 साल जी लूंगा

New Delhi : भारत के पहले स्पोर्टस सुपरस्टार मिल्खा सिंह नहीं चाहते थे कि उनके बच्चे स्पोर्टस लाइन में आये। उनकी चाहत थी कि उनके बच्चे पढ़ लिखकर डॉक्टर इंजीनियर बनें न कि स्पोर्टसमैन। क्योंकि स्पोर्टस में पैसा ही नहीं था और दूसरा यह कि जैसे ही आप लाइम लाइट से हटते हैं लोग आपको भूल जाते हैं। आपके पास कुछ नहीं होता। न तो पैसा होता है और न ही शोहरत। वो तो भला हो उन पर बनी फिल्म का जिसने उनका नाम फिर से लोगों को याद दिला दिया और लोगों से उन्हें ढेर सारा प्यार मिलने लगा। इसके बाद ही उन्होंने कहा था- लोगों का प्यार देखकर लगता है कि मैं इस प्यार के सहारे 100 साल तक जी सकता हूं।

मिल्खा सिंह ने एक बार अपने परिवार पर बात करते हुये कहा था- मैं और मेरी पत्नी निर्मल कौर दोनों स्पोटर्स पर्सन रहे हैं। वे वॉलीबॉल टीम की नेशनल कैप्टन थीं। हम नहीं चाहते थे कि हमारा बेटा जीव मिल्खा सिंह स्पोर्ट्स में जाये। मैं, मेजर ध्यानचंद और लाला अमरनाथ (क्रिकेटर) साथ के ही थे। मुझे लाला अमरनाथ बताते थे कि उन्हें मैच खेलने के दो रुपये मिलते थे। मेरा भी वही हाल था, पैसे तो थे नहीं। हमने तय किया बेटे को कोई प्रोफेशनल डिग्री दिलाएंगे। डॉक्टर, इंजीनियर बनायेंगे। मैं उसे शिमला के स्कूल में भेजना चाहता था, ताकि उसका ध्यान खेलों में न जाये। मगर कुछ और ही होना लिखा था शायद। एक बार स्कूल की तरफ से जूनियर गोल्फ में उसने (जीव मिल्खा) नेशनल जीता। फिर इंटरनेशनल के लिये लंदन और अमेरिका गया। 4 बार यूरोप की चैंपियनशिप जीती और फिर उसे पद्मश्री मिल गया।
उन्होंने अपने ऊपर बनी फिल्म की कहानी 1 रुपये में देने पर बात करते हुये कहा था- मैंने केवल अपनी पीढ़ी की फिल्में देखी हैं- मदर इंडिया, श्री 420, आवारा। उन दिनों, हमारे पास दिलीप कुमार, अशोक कुमार जैसे अभिनेता थे … मैंने 1960 के बाद एक भी फिल्म नहीं देखी। इसलिए मैं नये निर्देशकों या अभिनेताओं को नहीं जानता। हाल ही में तीन-चार निर्देशक मेरे घर आये और मेरी किताब पर फिल्म बनाने का अधिकार मांगा और मुझे 50 लाख रुपये से एक करोड़ रुपये की पेशकश की। मेरा बेटा (गोल्फर जीव मिल्खा सिंह) एक फिल्म शौकीन है। वो हर मैच के बाद फिल्म देखता है। और उसने मुझसे कहा, ‘पापा, अगर हमें किसी को फिल्म देनी है, तो वह राकेश ओम प्रकाश मेहरा होंगे क्योंकि मैंने रंग दे बसंती देखी है और मुझे वह बेहद पसंद आई। और अगर आपको पैसों की जरूरत है, तो मैं आपको 1.5 करोड़ रुपये का चेक दूंगा, लेकिन हम 1 रुपये की कहानी देंगे। तो यह मेरे बेटे का फैसला था। लेकिन हमने जिस समझौते पर हस्ताक्षर किये, उसमें मैंने एक शर्त रखी, जिसमें कहा गया था कि फिल्म से होने वाले मुनाफे का 10-15 फीसदी मिल्खा सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट को जायेगा।
हम एक गाँव से थे जो अब पाकिस्तान के मुजफ्फरगढ़ जिले के कोट अड्डू तहसील में है। हमारा गाँव शहर से 10 किमी दूर था। लड़कों को गांव से कोट अड्डू के स्कूल तक 10 किमी तक नंगे पांव चलना पड़ता। खिंचाव रेतीला था और मई और जून के महीनों में, आप कल्पना कर सकते हैं कि यह कितना गर्म होगा। हम एक किलोमीटर दौड़ते थे, घास का एक टुकड़ा मिलने पर रुक जाते थे, अपने पैरों को ठंडा करते थे और फिर दौड़ते थे। साथ ही, 50 फीट चौड़ी दो नहरें थीं जिन्हें हमें पार करना था। हम तैरना नहीं जानते थे, लेकिन हम अपने पैरों में बांस की छड़ें बांधते थे। वापस जाते समय हम 10 किमी पीछे दौड़ते थे। हम प्रतिदिन 20 किमी की दूरी तय करते थे। इसलिए मैंने बहुत मुश्किलें देखी हैं। मुझे उम्मीद है कि आज की पीढ़ी इस फिल्म से प्रेरित होगी। बंटवारे के दौरान मेरे माता-पिता, मेरे भाई और बहन मेरी आंखों के सामने खत्म कर दिये गये।

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