गरीबों का मसीहा : अमेरिका की चकाचौंध को ठुकरा ग्रामीणों की सेवा की, फीस नहीं लेते, दवाई खुद देते हैं

पटना : इस बार गणतंत्र दिवस के मौके पर पांच लोगों को पद‍्म पुरस्कार देने की घोषणा हुई है। इसमें डा. दिलीप कुमार सिंह का नाम पदमश्री पानेवालों की सूची में है। खास बात यह है कि यह डॉक्टरी को सेवा के रूप में पहचान दिलानेवाले की जीत है। वैसे तो इस वर्ष देशभर में 10 डॉक्टरों को पद‍्म पुरस्कारों से नवाजे जाने की घोषणा की गई है लेकिन डा. दिलीप कुमार सिंह सर्वाधिक उम्र में पानेवाले डॉक्टर हैं। डा. सिंह 92 वर्ष के हो गये हैं और बिहार के भागलपुर के पीरपैंती में रहते हैं। ग्रामीणों का इलाज करते हैं और वो भी इस बेहतरीन ढंग से कि सब उनको भगवान मानते हैं। यही नहीं भागलपुर के आईएमए चैप्टर के वे गॉडफादर माने जाते हैं। यही नहीं भारत सरकार द्वारा पोलियो अभियान शुरू करने के दस वर्ष पहले ही उन्होंने दो बूंद जिंदगी की जंग छेड़ दी थी। रूस से टीका मंगवाया था और पूरे भागलपुर में अभियान चलाया- दो बूंद जिंदगी की।

आज के समय में जब डॉक्टरी को पूरी दुनिया में व्यवसाय की शक्ल दे दी गई है। डॉक्टर पैसे कमाने के लिये तरह तरह के हथकंडे अपनाते हैं। देखते ही देखते करोड़ों के हॉस्पिटल खोल लेते हैं वहीं डा. दिलीप कुमार सिंह आज भी किसी मरीज को दवा नहीं लिखते हैं। अलबत्ता पुड़िया बनाकर मरीजों को देते हैं और किसी से कोई फीस भी नहीं लेते। सब जल्द ही स्वस्थ भी हो जाते हैं।
आप सोच रहे होंगे ये कैसा डॉक्टर है जो पुड़िया बनाकर देता है गोलियों की जगह पर। कहां से पढ़ा लिखा है। तो आपको बता दें कि डा. दिलीप कुमार सिंह बिहार के प्रसिद्ध पीएमसीएच और डीएमसीएच से पढे हुये हैं। अपनी योग्यता को धार देने के लिये कई बार अमेरिका और यूरोप जा चुके हैं। लेकिन विदेश की चकाचौंध भी उन्हें भागलपुर लौटने से रोक न सकी। जब भागलपुर में कालाजार महामारी के रूप में फैली तो डॉक्टर साबह सबकुछ भूलकर लोगों की सेवा में जुट गये। उन्होंने पैसों को कोई तरजीह नहीं दी। उन्होंने पैसे की जगह इंसानियत को तरजीह दी और आज वे लोगों के भगवान बन चुके हैं।

उनके पिता भी नामी डॉक्टर थे। उनका नाम था डॉ यमुना प्रसाद सिंह। वे आजादी से पहले सरकारी अस्पताल में नौकरी करते थे लेकिन उसी समय में भागलपुर में अंग्रेजों द्वारा मजलूमों पर गोली चलाने की घटना के बाद उन्होंने सरकारी सेवा से त्यागपत्र दे दिया और वे ग्रामीणों की सेवा में लीन हो गये। उनके पुत्र भी उनके बताये मार्ग पर चलने लगे और आज भी उनके बताये मार्ग पर चलते हुये बहुत सादगी भरा जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *