इसे सोन भंडार गुफा कहते हैं। नालंदा जिले के राजगीर में यह स्थित है। इसका रहस्य आज तक किसी को पता नहीं लग पाया है। एक बड़े पहाड़ को मौर्य शासक बिंबिसार के शासनकाल में काटा गया था। ऐसा कहा जाता है कि यह गुफा उसने अपने खजाने को छुपाने के लिए बनाई थी। इसमें उसने दो कमरों का निर्माण करवाया था। एक में सिपाही रुकते थे और दूसरे में खजाना रखा हुआ था।
अंग्रेज भी कोशिश करके हार मान गए थे
एक बड़े चट्टान से इसे ढक दिया गया था। आज तक इसे खोला जाना किसी के लिए भी मुमकिन नहीं हुआ है। कहा तो यह भी जाता है कि तोप के गोले से इसे उड़ाने की अंग्रेजों ने बहुत कोशिश की थी, लेकिन वे भी इसमें सफल नहीं हो पाए थे। गोलों के निशान आज भी यहां दिख जाते हैं।
गुफा पर लिखा हुआ है खोलने का राज
शंख लिपि में इस पर कुछ लिखा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि इस गुफा को खोलने का राज यही है। हालांकि, कोई इसे अभी तक पढ़ नहीं पाया है। जैन धर्म के अवशेष यहां मौजूद हैं। चट्टानों में 6 जैन धर्म तीर्थंकरों की मूर्तियां उकेरी हुईं दिख जाती हैं।
तीसरी और चौथी शताब्दी में हुआ निर्माण
गुफा में अंदर घुसने के साथ ही 10.4 मीटर लंबा और 5.2 मीटर चौड़ा कमरा मौजूद है। लगभग डेढ़ मीटर की इसकी ऊंचाई है। तीसरी और चौथी शताब्दी में इन दोनों गुफाओं का निर्माण करवाया गया था। इन गुफाओं के कमरे पॉलिश तक किए गए हैं। गुफा का खजाना आज तक रहस्य ही बना हुआ है।
जरासंध का खजाना?
इसके बारे में हालांकि यह भी कहा जाता है कि जो खजाना यहां पर बंद है, यह जरासंध का हुआ करता था। कंस का जरासंध ससुर था। जहां सोने का विशाल भंडार है, उसी जगह और भी कई गुफाएं बनी हुई हैं। बराबर की गुफाओं के नाम से इन्हें जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि लाखों टन सोना यहां छिपा हुआ है।