Patna : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपदा में अवसर की बात लोगों को आमदनी के नये जरिये तलाशने की सलाह के तौर पर भले कही हो। लेकिन देश में कई ऐसे लोग हैं, जिन्होंने इस वाक्य को लूटपाट का जरिया ही बना लिया। अब सीवान का ही मसला ले लीजिये। यहां पर आपदा में अवसर को ढूंढ़ते हुये महकमे के अफसरों ने सात एम्बुलेंस 21.84 लाख रुपये की कीमत से खरीद लिये। तीन गुनी कीमतों पर और वो भी नियमों को दरकिनार कर। अब कह रहे हैं कि बहुत इमरजेन्सी थी। ऐसी इमरजेन्सी कि जबसे यह एम्बुलेन्स खरीद कर लाई गई है तब से इसका इस्तेमाल भी नहीं हुआ है, क्योंकि इसे चलाने के लिये ड्राइवर व अन्य कर्मी नहीं हैं। हद तो यह है जिस मामले में एक आम आदमी भी आराम से पकड़ लेगा कि लूट खसोट हुई है, उस मामले में सीवान के जिलाधिकारी कह रहे हैं कि मामले की जांच करायेंगे और वे इसको जायज ठहराने के लिये प्रशासनिक तर्क भी दे रहे हैं।
मगर कोई तर्क इस बात को सही नहीं ठहरा पा रहा है। खासकर तब जब कोरोना की पहली लहर में खरीदे गये एम्बुलेन्स अभी तक किसी मरीज के काम नहीं आई है। वैसे बिहार में आपदा में अवसर ढूंढने के एक नहीं कई मामले रहे हैं। बाढ़ राहत घोटाला एक ऐसा घोटाला था जब तत्कालीन जिलाधिकारी ने जमकर आपदा में अवसर खोजा था।
बहरहाल दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक सीवान में 21.84 लाख रु. के एम्बुलेंस ओपन टेंडर से खरीदे गए। एक नहीं, सात। इनमें पांच की खरीद मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास मद से हुई। खरीदारी में कोई अड़चन न आये इसके लिये एक नोटशीट तैयार की गई कि जेम पोर्टल पर उस मानक व सुविधा वालें एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं हैं और कोरोनाकाल की तत्काल जरूरत को देखते हुये ओपन टेंडर की यह प्रक्रिया अपनाई जा रही है। सभी एम्बुलेंस सितंबर में पहली लहर के दौरान खरीदी गई, लेकिन दूसरी लहर तक एक भी दिन इनका इस्तेमाल नहीं हुआ। वजह, ड्राइवर और स्टाफ की कमी बताई जा रही है। चौंकाने वाली बात यह है कि 7 एम्बुलेंस को ‘एम्बुलेंस’ में कन्वर्ट करने के लिए एक-एक पर करीब 7 लाख रु. खर्च किये गये। जबकि करीब 4 लाख की इको कार को मारुति एम्बुलेंस के रूप में लगभग 7 लाख में बेचता है।
इस पूरे मामले की खास बात यह है कि नियमों के मुताबिक 5 लाख से अधिक की खरीदारी जेम पोर्टल से करना अनिवार्य है। लेकिन जेम पोर्टल से खरीददारी नहीं की गई, यह कहते हुये कि एम्बुलेंस की इमरजेंसी है और यह पोर्टल पर उपलब्ध नहीं है। सीवान के डीएम अमित कुमार पांडेय ने भास्कर से बात करते हुये तर्क दिया- कोविड के दौर में तत्काल जरूरत पड़ी तो पहले जेम पोर्टल पर ही प्रयास किया गया। वहां नहीं मिला, तब ओपन टेंडर किया गया। एम्बुलेंस के दाम 7 लाख लिये गये तो फिर इसे एम्बुलेंस के रूप में तैयार करने के लिए फ्रैब्रिकेशन-इंस्टालेशन पर 6.72 लाख अलग खर्च क्यों हुआ यह जांच का विषय है। जांच दल इसपर ध्यान देगा।
यही नहीं इसका बिल भी अधूरा है। 3.41 लाख का ट्रांसपोर्टेबल वेंटिलेटर, 1.18 लाख का मल्टी पारामीटर मॉनिटर, 69 हजार का स्ट्रिंग पंप, 33 हजार का पोर्टेबल सक्शन मशीन लगी है। इनकी कीमत मॉडल से तय होती है, पर बिल में मॉडल का जिक्र नहीं है। फैब्रिकेशन-इंस्टालेशन पर 6.72 खर्च के अलग 1.24 लाख खर्च और जोड़ा गया है। मरीज से ड्राइवर केबिन को अलग करने के लिए एयर टाइट फोल्डेबल पार्टिशन पर यह राशि खर्च की गई है। फ्रैब्रिकेशन-इंस्टालेशन पर 6.72 लाख खर्च किया गया है, जिसमें 2 अटेडेंट के लिए सीट-बेल्ट। पेशेंट स्ट्रेचर, ऑक्सीजन के लिए प्रेशर गेज, फ्लो मीटर, पाइपलाइन, इनवर्टर-बैट्री, सायरन, माइक, एलईडी लाइट्स भी लगाई गईं हैं।