पटना: बिहार पंचायती राज विभाग ने बड़ा फैसला लिया है। वर्षों से विवादित मामले को अब आदेश लाकर निपटाया जा रहा है। विभागीय आदेश के मुताबिक अब कोई भी महिला जनप्रतिनिधि का पति या रिश्तेदार सरकारी बैठकों में शामिल नहीं होगा। महिला जनप्रतिनिधि को खुद सभी बैठकों में उपस्थित होना अनिवार्य है। इसको लेकर पंचायती राज विभाग के मंत्री सम्राट चौधरी ने आदेश जारी कर दिया है। इसमें कहा गया है कि उक्त आदेश के उल्लघंन पर कार्रवाई की जाएगी। यह निर्णय त्रिस्तरीय पंचायत संस्थाओं एवं ग्राम कचहरी की जनप्रतिनिधियों पर लागू होना है। मंत्री के आदेश में यह भी कहा गया है कि महिला जनप्रतिनिधि किसी बठक के लिए अपने प्रतिनिधि को मनोनीत नहीं कर सकेंगी।
50 फीसदी आरक्षण के बाद बढ़ीं हैं महिला जनप्रतिनिधि
बिहार पंचायत चुनाव में राज्य सरकार द्वारा मिले 50 प्रतिशत आरक्षण के बाद महिला जनप्रतिनिधि काफी बढ़ गईं हैं। आरक्षण मिलने से महिलाएं मुखिया, सरपंच और पंचायत समिति सदस्य के पद पर बैठीं हुईं हैं। मगर, पंचायत के विकास कार्य या अन्य चीजों से जुड़े फैसले महिला जनप्रतिनिधि स्वतंत्र रूप से नहीं ले पा रहीं हैं। सारे काम और निर्णय उनके पति एवं रिश्तेदार ले रहे हैं। इसकी शिकायतें भी काफी आ रहीं थीं। ऐसा होने का एक कारण यह है कि महिला जनप्रतिनिधियों के प्रतिनिधि उनके पति, देवर या घर का अन्य कोई सदस्य होता है। बेहद कम महिला जनप्रतिनिधि हैं, जो बैठकों में खुद आती हैं। लोगों के बीच खुद जाती और उक्त स्थल पर कोई घोषणा या कार्रवाई करतीं हैं।
इस चुनाव में बढ़ीं युवा महिला जनप्रतिनिधि
पिछले साल हुए पंचायत चुनाव में युवा महिला जनप्रतिनिधियों की भी संख्या बढ़ी है। कई 22 से 30 साल की युवतियां अलग-अलग पदों पर चुनाव जीती हैं। खास बात है ये सभी पढ़ी-लिखी और स्वतंत्र निर्णय लेने वाली हैं। सभी पहली बार चुनाव लड़ी और जीती भी। इनमें से ज्यादातर का पॉलिटिकल बैकग्राउंड भी नहीं है। सभी सामान्य परिवार से आती हैं। कोई उच्च शिक्षा हासिल कर रहीं थीं तो कोई नौकरी कर रहीं थीं।