फिल्म मिले न मिले हम में कंगना रनौत के साथ चिराग पासवान। इनसेट में पिता स्वर्गीय रामविलास पासवान के साथ चिराग पासवान। Image Source : Instagram

फिल्मों में फ्लॉप होने पर पिता लाये थे विरासत संभालने, राजनीति में भी चिराग पर लगा फ्लॉप का ठप्पा

New Delhi : फिल्मों में flop होने के बाद चिराग पासवान को मजबूरन राजनीति में आना पड़ा। उन्होंने तो पूरी कोशिश की कि उनका फिल्मी करियर आगे बढ़े। इसके लिये रामविलास पासवान ने भी कम जोर नहीं लगाया। मगर जब तमाम प्रयासों के बाद भी फिल्में पिटती चली गईं और बाद में कोई निर्माता ही नहीं मिला फिल्म बनाने के लिये तो मजबूरी में उन्हें राजनीति का दामन थामना पड़ा। चिराग पासवान ने अपने पिता की मदद से राजनीति में कदम रखा और लोकसभा के दो चुनाव जीतकर कुछ साख बनाई। लेकिन रामविलास पासवान के निधन के बाद एकाएक पार्टी की कमान उनके हाथ में आ गई। उनके चाचा और पार्टी के पुराने कार्यकर्ता पशुपति पारस समेत कइयों को यह नागवार गुजरा। फिर भी उनलोगों ने रामविलास पासवान की विरासत को संभावल कर रखा।

 

बड़ा दायित्व चिराग पासवान पर भी था कि वे रामविलास पासवान की विरासत को आगे बढ़ाने के लिये हर फैसले में कार्यकर्ताओं और पार्टी सहयोगियों का मन टटोलते। पर ऐसा नहीं हुआ। राजनीति के दांव पेंच में वे बेहद कमजोर साबित हुये। पिता की विरासत क्या संभालते, उन्होंने पिता के जाने के बाद पहले चुनाव में कूदते ही दिग्गज नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू से दुश्मनी मोल ले ली। जबकि रामविलास पासवान अपने पूरे राजनीतिक करियर में किसी भी पार्टी या दल के दुश्मन नहीं बने। वे अपनी सहूलियत के हिसाब से कभी यूपीए का हिस्सा बने तो कभी एनडीए का। उनकी हर जगह एक समान पूछ थी। इसका सबसे बड़ा कारण था उनकी यह समझ कि मेरा हिस्सा कितना है जिसकी वजह से वे चाहे किसी भी गठबंधन में रहे हों लेकिन हिस्सेदारी के लिये कभी कोई विवाद नहीं उभरा। उन्होंने उतना ही हिस्सा लिया, जितना पचा सकते थे।
उनका व्यक्तिगत मिलनसार व्यवहार भी इसमें काफी हद तक सहायक बना। पर बेटे ने उनके इन मूल्यों को दरकिनार कर दिया। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जब जदयू से सीधे भिड़े तो ऐसा लगा कि उनकी पार्टी ही उनके साथ खड़ी नहीं है। खबरें तो यहां तक आईं कि विधानसभा चुनाव में ही पार्टी टूट जायेगी। पर पशुपति पारस ने उस वक्त बेहद चतुराई से यह दिखाने की कोशिश की कि पार्टी में कोई मनभेद नहीं है। हालांकि विधानसभा चुनाव के परिणाम ने साबित कर दिया कि पार्टी के कार्यकर्ता एकसाथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ रहे थे। पार्टी को एक ही विधायक की सीट मिली और वह विधायक भी जदयू में चला गया।
इसके बाद से ही पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं है और असंतोष का मसला उबाल मारने लगा। और अब ज्यों ही केंद्र में मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा शुरू हुई तो पार्टी के पांच सांसदों पशुपति पारस (चिराग के चाचा), प्रिंस राज (पशुपति के बेटे), चंदन सिंह, वीणा देवी और महबूब अली कैसर ने चिराग पासवान को ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला की मजबूरी है कि वे संसदीय दल के नेता के रूप में पशुपति पारस को मान्यता दें। अर ऐसा नहीं भी होता है तो सारे सांसद जदयू में शामिल होने के लिये तैयार हैं। शर्त बस मंत्री पद की है। ऐसी स्थिति में जदयू को रामविलास पासवान की खाद्य आपूर्ति मंत्रालय हासिल करने में और आसानी होगी और जदयू के मंत्रियों की संख्या में इजाफा होगा। अगर पशपुति पारस को लोकसभा में लोजपा के संसदीय दल के नेता के रूप में मान्यता मिल जाती है तो भी यह तय हो जायेगा कि केंद्र में पशुपति पारस ही मंत्री पद की शपथ लेंगे।

दोनों की परिस्थितियों में चिराग पासवान नुकसान की स्थिति में हैं। और पूरी तरह से खाली नजर आ रहे हैं। यह वही स्थिति है जो स्थिति उनकी तब थी जब वे बॉलीवुड इंडस्ट्री में थे। उनकी पहली और आखिरी फिल्म मिले न मिले हम रिलीज हो गई थी और फिल्म इंडस्ट्री में उनको कोई पहचानने वाला तक नहीं था। उनकी कोस्टार कंगना रनौत आज बॉलीवुड क्वीन हो गईं हैं और चिराग फ्लॉप हो गये। उम्मीद ऐसी थी कि राजनीति में वे अपने ऊपर लगे फ्लॉप के धब्बे को मिटा लेंगे। पर अफसोस उन्होंने रामविलास पासवान की विरासत को धूल धुसरित कर दिया।

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